मंगलवार, 22 अगस्त 2017

तुम्हारे लिए बेन...



अजीब ही है पर कुदरत की बनायी या अपने आस पास की शायद ही कोई शै होगी जिससे मैं जुड़ाव महसूस नहीं कर पाती....धूप, मिटटी, सुबहें, सड़कें, दरख़्त, पत्थर, चांदनी, ट्रेन की गूंजती आवाज़, रसोई से उठते धुंए में लिपटी ख़ुशबू या किसी बच्चे की किलकारीबारिशों से यारी और शामों से बैर रहा...इन सबसे कहने सुनने में कभी कोई मुश्किल नहीं हुई...और ऐसे में जब बात लोगों की हो तो क्या ही कहूँ...हर शख्स मुझे कहानी लगता है...कुछ न कुछ ऐसा जो जानना कहना चाहती हूँ...संवाद...कितना ज़रूरी है ये मेरे लिए...

मैं सोचती थी मेरे इर्द गिर्द वो सब लोग जिनसे सबसे गहरे जुड़ी हूँ...जिनका असर है, जिनका होना मेरे होने और ऐसा होने में बहुत मायने रखता है...उनके बारे में लिखूं...पर सोचती ही रह गयी...आज सोचा कुछ शुरू तो कर ही दूँ...ये शायद मुक़म्मल नहीं होगा पर कोशिश तो करूँ...और इसके लिए सात साल पीछे लौट रही हूं..

ईटीवी के साथ बहुत थोडा वक़्त काम करके लौटी थी...अच्छा ख़ासा संघर्ष अपने शहर में नौकरी ढूँढने में हो रहा था...एक पार टाइम काम से मुक्त हुई थी...इत्तेफाक़न दो जगहों से एक ही समय में काम करने का ऑफर आ गया...मैं फिर उलझन में जिससे हमेशा की तरह मुझे मैम ने निकाला था....पहले दिन पहुँचने पर या शायद इंटरव्यू के ही दिन सहयोग के दफ़्तर पहुंचकर उनके बाहर के कमरे में इंतज़ार करती हूँ...नर्वस, डरी भी कह सकते हैं जैसे कोई बच्चा किसी नए स्कूल पहुँचने पर होता है...मुझे वहां के लोग ऐसे लग रहे थे कि क्या लोग हैं ये, ऑफिस का माहौल कुछ वैसा जिसमे कभी काम नहीं किया, मुझे तो ऐसा कुछ नहीं आता, कैसे होंगे लोग यहाँ पर, मैं सीख पाऊँगी या नहीं, काम कर पाऊँगी या नहीं, आत्मविश्वास जाने कहाँ पीछे कहीं था और उन सबके ऊपर था संशय कि ठीक कर तो सकेंगे, ख्वाहिश कि इन सब जैसे हो सकें...खुद से ही कह रहे थे कि खूब मन से काम करेंगे...और आने वाले कुछ समय में वो जगह परिवार सी हो गयी..

दाहिनी तरफ़ के कमरे का दरवाज़ा खुलता है और एक लड़की बाहर आती है...कोई मिलने आया है उससे, उसे लेकर अन्दर चली जाती है...शायद उससे कहती है कि आओ इधर ही बैठ जाओ...न कोई गर्मजोशी, न कोई दिखने की भी औपचारिकता...बस ये ही झलक थी...मिनट के उस हिस्से में जो दिखा वो बला का आत्मविश्वास और सहजता थी, जिससे शायद ही कोई प्रभावित न हो....ये तुम थी...मेरी अन्नू बेन !

मैंने कहा था न कुदरत के साथ यूँ ही राब्ता कायम हो जाता है मेरा...इस वक़्त जब इस बेमिसाल लड़की के साथ बिताये पल याद कर रही हूँ तो बाहर झूम कर बारिश हो रही है...किसी अहसास को इससे खूबसूरत भला कैसे बनाया जा सकता होगा कि आपके दिल के दो अज़ीज़ एक ही वक़्त आपके साथ हों...

मैं क्या तुम से मिलने पर शुरू में कोई भी व्यक्ति चकरा जाए...उस सहजता, अल्हड़पन की उम्मीद नहीं रहती किसी को...उम्मीद इसलिए नहीं रहती कि आम तौर पर लोग ऐसे होते नहीं... ‘दिखने’ या ‘लगने’ की फ़िक्र में ज़रा तो घुलते ही हैं...उन सबसे इतर तुम एक एक पहाड़ी नदी सी...पूरे शोर, हलचल और जोश के साथ बहने वाली कि जो आसपास हो बस खिलखिलाता हुआ साथ हो ले...देखी हैं न वो पहाड़ी वादियाँ कि जहाँ गर वो नदी न हो तो डरावना सन्नाटा पसर जाए...बस ऐसी ही ज़िन्दगी से भरी शख्सियत है तुम्हारी...पर ये सिर्फ़ एक ही पक्ष है...मनमौजी, बेफिक्र बच्चों सी ज़िद्दी भी और वैसी ही मन की कच्ची भी...जिन बातों का सामना करने में अच्छे अच्छों की हिम्मत जवाब दे जाए वो काम तुम बस यूँ ही कर जाओ...और जो बातें बातों जैसी हों भी न, वहां फुक्का फाड़ के रोने लगो...ऐसी लड़की कि जिस महफ़िल में बैठे वहां की अघोषित सभापति बन जाए...नए लोग विस्मित हो देखें, किसी को भी डपट दे, किसी के लिए भी उदास हो जाए...

बेपरवाह होकर अपनी तरह जीना, बिना किसी शर्म और अफ़सोस के, अपनी बातों पर टिकना, उनके लिए लड़ जाना जैसी तमाम बातें जो करते मैं तुम्हें लगभग हर रोज़ देखती हूँ और इसके अलावा शायद ही किसी को ऐसा देख पायी हूँ...भयंकर मूडी कि सुबह सुबह स्टेशन पर कुली को हड़का दो....दुसरे का एकदम संतुलित प्यार और फ़िक्र हो...ज़रा भी ज़रूरत से ज्यादा प्यार दिखाना तुम्हें उलझन दे जाए पर ज़रूरत भर का न होने पर शामत भी है...परफेक्ट चाय जैसा...तुम्हारे मन की भला चाय भी कौन बना पाए...अपने प्यार का इज़हार छोटी छोटी अदृश्य बातों से पर अपनी ईर्ष्या और गुस्से का इज़हार खुल्लम खुल्ला करने वाली, दिल खोलकर मदद करने वाली, बेतरतीब पर बिंदास, बेझिझक और कहीं भी किसी के सामने अपनी बात कहने वाली लड़की

तुम उसी पल मुझसे झगड़कर मुझे डांटती तो दूसरे ही पल मुझे कुछ कह देने पर किसी की क्लास लगा देती...वो भी ऐसी कि ख़ुद मुझे समझाना पड़े कि जाने दे सबकी परवाह मत किया कर, किसी परेशानी में होने पर चाहने के बावजूद मैं तुम्हें कोई बात बताना जितना हो सके टालती हूँ...क्यूंकि मुझे समझाने के बाद तुम  ख़ुद मेरे लिए मुझसे ज्यादा टेंशन में आ जाती...बहुत संभावना होती है कि मैं नार्मल हो चुकी हूँ और तुम मेरी फ़िक्र में घुली जा रही होती हो...और ये बात सिर्फ़ मुझ तक सीमित नहीं तुमसे जुड़े हर शख्स के बारे में है... दो पल पहले बिलकुल बे सिर पैर की बात करने वाली लड़की जब मेरी तकलीफ ध्यान से सुनकर समझाती है तो कितनी ही दफ़ा मैं ख़ुद हैरानी से भर जाती हूँ...मेरे अच्छे बुरे दौर में तुम मेरे पास न होकर भी रही हो...मुझे ये भरोसा रहा है कि सब ठीक होगा क्यूंकि तुम हो...तुमसे लड़ने झगड़ने के बावजूद तुमने हर पल मुझे बेहतर इंसान और में जिंदगी को बेहतर मायने दिए हैं...मुझमें जो कुछ भी अच्छा है, उसके होने की वजह में तुम्हारा होना भी है....मुझे नहीं पता कि जो जगह है तुम्हारी उसे कैसे बताया जा सकता है...पर मेरी ज़िन्दगी की सबसे खूबसूरत बातों में से एक ये है कि तुम साथ हो, फिर चाहे तुम सबके सामने मेरा मजाक ही क्यूँ न बना दो...और उससे भी खूबसूरत ये कि कभी कभी मैं भी तुम्हारे साथ इसी तरह हो पाती हूँ...रातों को घूमना, बात न करना पर ट्रेन की एक ही बर्थ साझा करना, टीटी के टोक देने पर दूसरे के लिए उससे झगड़ा कर लेना... या एक दूसरे को देख पेट पकड़ कर थक जाने की हद तक हँसना...और बाकी सारे हैरान परेशान हमें पागल समझ देखते रहें....मेरे दिल की एल्बम में साथ बिताया हर पल महफ़ूज़ है..  

आज के दिन तुम्हारे लिए चाहूँ तो क्या चाहूँ...शायद बस इतना कि तुम्हें कोई जाने तो पूरी तरह जाने, जैसी तुम हो वैसी ही, उस तरह टुकड़ों में नहीं जैसा करने की गलती कई लोगों ने की...क्यूंकि तुम उसी निश्छल प्यार कि हक़दार हो जो तुम दूसरों को देती हो...तुम्हारा भोलापन और साफ़गोई किसी को भी प्रभावित भले करे पर तुम्हारी तरफ़ स्वार्थी न बनाये....तुम्हारी ज़िन्दगी से हर उदासी दूर हो, दुनिया के सामने वो जिंदादिल खिलखिलाता किरदार एक भी पल किसी अकेली उदासी से न घिरे...क्यूंकि अपने उस हिस्से को ये कहीं गहरे छुपा देता है...मैं जानती हूँ दुनिया कि बाकी सारी बातों और मुश्किलों से तो तुम ख़ुद ही निपट लोगी...आज का दिन तुम्हे बहुत बहुत मुबारक...तुम्हें बहुत बहुत प्यार और शुक्रिया...इस तरह होने के लिए...तुम ख़ुश रहो बस ये ही चाहती हूँ...फ़ोन की आपदा का समय है इसलिए तस्वीर पुरानी है...अब जल्दी से आओ केक पापा मंगवायेंगे, आज पेठा मिला है...हमारे लिए तो कभी मंगवाने को कहा नहीं ऐसे...हुंह!

और सुनो, आज सुबह बेमतलब का डांटा गया है हमें