गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018

माँ आदरणीय पर कौन सी माँ ?

उस रोज़ सुबह 7 बजे आँख अन्नू के फ़ोन से खुली.... “बेन ये बताओ घी कैसे बनता है?” मेरा उनींदा दिमाग़ इस सवाल के लिए तैयार नहीं था...मैंने अलसाते हुए पूछा “मिक्सर है?”...उधर से पूरे आत्मविश्वास से आवाज़ आई “नहीं”..“मथनी है?”....नहीं...चम्मच है उससे काम चलेगा?”...मेरे जवाब का इंतज़ार किये बिना उसने सहायिका को आवाज़ देकर कहा “दीदी चम्मच से ही कर दीजिये, हो जाएगा”....इसके बाद भी मुझे कुछ बोलने का मौका दिए बिना उसने अपनी बात जारी रखते हुए उदास लहजे में जो अगली बात कही वो और भी अधिक अप्रत्याशित थी..नींद से भरे अलसाए दिल, दिमाग़ और शरीर के लिए ज़्यादा ही भारी...“बेन मेरा सपना पूरा नहीं होगा क्या? मेरे ढेर सारे बच्चे कैसे होंगे? साला...शादी नहीं होगी तो क्या हम मां नहीं बनेंगे...हम कह रहे हैं सादिया से चलो 3-4 सहेलियां मिलकर सिंगल मदर बनते हैं...बच्चे पैदा करेंगे...तुम सब ख़बरों में आ जाओगी...कोई कुछ कहेगा या विरोध होगा तो वो भी ख़बर और एक बड़ा सवाल....और हमें तो साला किसकी इतनी हिम्मत कि कोई कुछ कहे...बताओ क्या कहती हो सही आईडिया है न?”...मेरी नींद उड़ाने का भला इससे ज़ालिम तरीका क्या हो सकता था....चाय की तलब हो गयी पर अभी बातें पूरी नहीं हुई थीं...पुराने संबंधों पर बातें और उन लड़कों को गरियाने से दिन की शुरुआत हो गयी....

इस लड़की ने मुझे हमेशा विस्मित किया है...अपनी बातों, मलंग और मस्त रवैये और तमाम अन्य बातों से...हर बार कोई न कोई ऐसी बात जो चौंका देती....दुनिया को ठेंगे पर रख देना...और उसका ये तरीका मुझे अजीब ख़ुशी से भर देता....मैं जब से इसे जानती हूँ तब से ये बात जानती हूँ कि उसे ढेर सारे बच्चे पैदा करने थे....साल दर साल वक़्त बीतता गया, उसके साथ हम लोग बढ़ते गए लेकिन इतने वक़्त में एक ये बात कभी न बदली....ऐसा भी लगता कि उसे शादी भी शायद बस इसीलिए करनी है कि वो बच्चे पैदा कर सके...इस लेख का कुछ हिस्सा जब उसे पढ़ाया तो उसने फ़ौरन कहा कि “सुनो हम मज़ाक नहीं कर रहे हैं, सीरियस हैं....एक साल में अगर शादी नहीं हुई तो हम कुछ न कुछ जुगाड़ करके बच्चा तो पैदा कर ही लेंगे”....उसी रोज़ शाम अंकिता ने बातचीत के दौरान कहा “बहन हमें पति की ज़रुरत नहीं लगती पर बच्चे की लगती है अब जिसकी ज़रुरत होगी वो ही करना चाहिए न”...मैंने हंसते हुए कहा “हाँ बिल्कुल सही बात”... और ये कहते हुए मेरे ज़ेहन में सुबह की बातचीत ताज़ा होने लगी...मैंने उसका ज़िक्र भी किया तो ये आगे बताने लगी “पता मेरी एक सहेली ने कहा कि तुम अपनी जन्मपत्री पंडित को दिखाना...जब वो विवाह का योग बताये तब ही अपने लिए लड़का ढूंढना ज़रूर मिलेगा....हमने उससे कहा सुनो हमें पंडित ने पति योग तो नहीं संतान योग बताया है बताओ क्या करें....उसने कहा बेशर्म हो गयी हो बिल्कुल”....हम दोनों ही हंस पड़े... अन्नू की बात कानों में गूँज रही थी ... “शादी नहीं होगी तो क्या हम मां नहीं बनेंगे”...मैं इन ‘बिगड़ी’ लड़कियों को सुन कर ख़ुश हो रही थी....ढांचे पर पत्थर मार एक और दरार डालने वाली बात...शाबाश!!

वाकई अगर सोचें तो भला क्यों ये ज़रूरी हो...एक बच्चे की ख्वाहिश और ज़रूरत महसूस होना, लेकिन एक पुरुष साथी की ज़रूरत न महसूस होना, शादी के बंधन में बंधने की इच्छा न होना इतना अस्वाभाविक क्यों है....अन्तरंग संबंधों का शादी से पहले और बाद में होने से उसका जायज़ नाजायज़ या सही ग़लत होना....एकल अभिभावक बनना....मेरी ज़िन्दगी, मेरे शरीर, मेरे मन की ज़रूरतें भला बाकी बातों के दबाव में क्यों हों...ऐसे सवाल चोट तो करेंगे पर इन्हें सोचना तो ज़रूरी है ही...भला इन सबका ऐसा दबाव क्यों...हम अपनी चाहतें और ज़रूरतें देखते हुए रिश्ते क्यों चुन या बना नहीं सकते.  

मैं अगर अपनी ही बात करूँ तो मेरी जो सहजता महिला मित्रों के साथ है वो पुरुष मित्रों के साथ नहीं. बल्कि पुरुष मित्र गिनती के ही होंगे. अपनी ज़िन्दगी में मेरी प्राथमिकताएं फ़र्क हैं जैसे काम, परिवार, दोस्त, पढ़ना लिखना वगैरह...इन सबमें शादी के लिए वक़्त कहीं फ़िट नहीं होता. बल्कि मेरी तो शादी के लिए भी प्राथमिकताएं फ़र्क ही हैं. अपनी ज़िन्दगी से संतुष्ट हूँ और शादी की ज़रुरत महसूस ही नहीं होती. कुछ लोगों ने दबे स्वर और सभ्य भाषा में कहा कि जीवन की और भी ज़रूरतें होती हैं, साथ चाहिए होता है...उनके लिए मेरा जवाब ज़रा असभ्य हो जाता कि उन ज़रूरतों के लिए भला शादी करने की क्या ज़रुरत...मुझे कभी ऐसे भाव मिलते मानो मैं कैसी बेशर्म हूँ..इसी से चरित्र का अंदाज़ा भी लगा लिया जाता है...कभी हैरानी के भाव होते हैं तो कभी सहमति के भी. रही साथ की बात तो भई ‘फ़ैशन के इस दौर में गारंटी की इच्छा न करें’ की तर्ज पर मैं ‘साथ’ की गारंटी पर सवाल कर देती हूँ. तो बात हमेशा एक हल्के विवाद के बाद आई गयी हो जाती है. पर इन सबके बावजूद बच्चों से मुझे बेहद प्यार है. मैं माँ तो बनना चाहूंगी पर गोद लेकर, गर्भधारण करके नहीं. मुझे उस असहजता और दर्द से नहीं गुज़रना न ही मुझे ‘मेरा’ या ‘दूसरे’ का बच्चा जैसी ही कोई समस्या है. अभी इस ज़िम्मेदारी के लिए तैयार नहीं हूँ पर अगर कल को हो ही जाऊं तो भला क्यों शादी या पति की ज़रुरत हो. क्यों ये सोचना मुश्किल हो.

अब दूसरी स्थिति लें. मैं गर्भधारण करना चाहूँ तो? अन्नू की तरह. पर मुझे शादी की ज़रुरत न हो तो? मुझे एक बच्चे की ज़रुरत हो, मैं उसे पैदा करना, एक अभिभावक का प्यार देना चाहूँ लेकिन मुझे पति के रूप में किसी साथी की ज़रुरत न हो, मेरे लिए ये कोई ज़रूरी शर्त न हो कि बच्चे के जीवन में पिता हो ही, मेरी कोई इच्छा न हो कि मेरी बच्चे की ख्वाहिश के साथ जबरन मुझपर ससुराल से जुड़े तमाम सम्बन्ध और ज़िम्मेदारियाँ लाद दी जाएँ....मैं सक्षम व स्पष्ट हूँ, मेरी ज़रूरतें और प्राथमिकताएं फ़र्क हैं, तो क्यों सिर्फ़ शादी के ज़रिये रिश्तों की संवैधानिकता या असंवैधानिकता तय हो. तार्किक तौर पर सोचें, मैं एकल अभिभावक बनना चाहती हूँ, न मेरे साथ कोई धोखा हुआ, न ज़बरदस्ती बल्कि ये मेरा चुनाव है...उस बच्चे को एक अच्छा इंसान बनाने के लिए जो भी ज़रूरतें हैं, उनके लिए मैं सक्षम हूँ....तो शारीरिक सम्बन्ध का विवाह से पहले और बाद में बनाये जाने से ‘सही’ ‘ग़लत’ क्यों तय हो....मैं IVF तकनीक में न जाना चाहूँ, कोई हो जिससे शायद मुझे प्रेम हो, या कहिये सिर्फ़ आकर्षण हो तो क्यों ज़रूरी हो कि मेरी एक बच्चे की ज़रुरत के लिए हम बिना वजह शादी में बंधें...और अगर न बंधें तो क्यों वो ग़लत करार दिया जाए...अगर वो मेरा ही निर्णय है तो?

यहाँ तक तो बातें मेरी इच्छाओं व चुनाव की...अब अगर ये देखना शुरू करें कि मेरे इर्द गिर्द वो कौन सी संस्थाएं हैं जो सीधे तौर पर मुझे प्रभावित करेंगी...मेरे लिए स्थितियों को आसान या मुश्किल करेंगी...तो इस मामले में कानून बहुत उलझाने वाले हैं...अव्वल तो एकल अभिभावकों के लिए अलग से कोई कानून नहीं...इसके सामाजिक पहलू भी हैं...और कानूनी तौर से कई सारी बातें हैं जैसे गोद लेने या IVF तकनीक की जगह यदि बच्चा पैदा किया जाए तो उसमें बड़े पेंच हैं...मान लें अगर कोई महिला किसी पुरुष के साथ सम्बन्ध बनाकर गर्भ धारण करती है...सम्बन्ध बनाने से पहले ही ये बात स्पष्ट कर दी जाती है कि महिला को माँ बनना है, ये उसकी इच्छा, उसका चुनाव है, न शादी होनी है न ही पुरुष को किसी भी तरह की ज़िम्मेदारी निभानी होगी...इन सबके बावजूद यदि कल को जैविक पिता बच्चे पर दावा कर दे तो कानूनन उसके अधिकार हो सकते हैं..ये कोर्ट के निर्णय पर निर्भर करेगा...इसके अलावा उस बच्चे के भी न सिर्फ़ अपनी माँ बल्कि जैविक पिता की संपत्ति पर अधिकार होंगे...शादी होने या न होने से कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा...अब ऐसे में भला कौन ही पुरुष साथी तैयार हो क्योंकि बहुत समय तक ये संभव नहीं कि संतान के आग्रह के बावजूद उससे पिता की पहचान छुपायी जाए या जीवन भर हर पल झूठ का सहारा लिया जाए...ख़ास तौर से संतान के वयस्क होने के बाद...ये सही भी नहीं लेकिन ऐसा होने के नतीजे उस पुरुष साथी के लिए मुश्किल पैदा कर सकते हैं....ऐसे में किसी भी पुरुष साथी का सहयोग देने से बचना स्वाभाविक है क्योंकि संतान की इच्छा तो पूरी तरह महिला की थी और सम्बन्ध सिर्फ़ इसी वजह से बनाए जा रहे थे..वो क्यों चाहेगा कि बाद में उसके जीवन में एक दोस्त को दिया गया सहयोग अचानक कोई समस्या बनकर आ जाए...ऐसे में ये ज़रूरी है कि एकल अभिभावकों व उनके बच्चों के लिए कानून में अलग समुचित व्यवस्था की जाए जिसमें सबके अधिकारों को सुनिश्चित किया जाए. 
  
इसके अलावा अब परिवार की ही भूमिका को अगर देखें....परिवार वो संस्था है जो अगर साथ आ जाये तो व्यक्ति की न सिर्फ़ सबसे बड़ी मुश्किल आसान हो जाए बल्कि उसे दुनिया से लड़ने का हौसला भी मिल जाए...लेकिन क्या ऐसा होता है? ऐसे परिवार बमुश्किल ढूंढे मिलें शायद जो इन स्थितियों में घर की बेटी का साथ दें...बल्कि जो होता है वो इसका उल्टा होता है...परिवार सबसे बड़ी रुकावट या विरोधी हो जाता है...ख़ासतौर से अगर बच्चा गोद, IVF या सरोगेसी की जगह किसी पुरुष साथी के साथ सम्बन्ध बनाकर पैदा किया जाए...ये एक बड़े कलंक की तरह देखा जाएगा जिसे कोई परिवार पसंद नहीं करेगा...बेटी का रात दिन जीना दुश्वार किया जा सकता है और बच्चे के लिए जो कड़वा व्यवहार होगा उसकी कोई सीमा नहीं...ऐसे में एक बात और आ जुड़ती है...बेटी के माँ बाप सालों साल कोशिश करते हैं कि उसकी शादी हो ही जाए...वो मान जाए और कर ले...ये कोशिश कहिये बेटी के 50- 55 साल के हो जाने तक भी चलती रहे...तो एक बात तो ये कि परिवार की नज़र में बेटी की शादी ज़रूरी होती है जिसके लिए परिवार के लोग कई कारण गिनाने लगते हैं....दूसरी बात ये कि एक ऐसी महिला की शादी होना उनकी नज़र में मुश्किल है जो एक माँ भी है...और अगर ये माँ बनने की प्रक्रिया बाक़ायदा सम्बन्ध बनाकर की गयी है तब तो शादी असंभव ही हुई...हमारे परिवारों में जहाँ बेटी ‘पराया धन’ है वहां उसके बच्चे कैसे अपनाए जा सकते हैं....किसी भी कारणवश यदि माँ को कुछ हो जाये तो बच्चे को अपनाने वाला कोई भी नहीं, उसका क्या जीवन हो...हमारे पास कोई वैकल्पिक व्यवस्था भी नहीं. 
    
इसी तर्ज पर अब समाज की प्रतिक्रिया भी समझी जा सकती है...कि किस प्रकार का चरित्र हनन किया जायेगा...ये न सिर्फ़ माँ के लिए है बल्कि बच्चे के लिए भी उसका बचपन व युवावस्था तमाम मुश्किलों भरी होगी...वो ऐसे रिश्ते से दुनिया में आया होगा जिसे न सिर्फ़ समाज बल्कि क़ानून भी ‘नाजायज़’ कहता है...हर पल ख़ुद को ‘पाप की संतान’ सुनना एक अबोध मन पर क्या प्रभाव डालेगा ज़रा सोचें...माना कि माँ मज़बूत है दुनिया को ठेंगे पर रखने वाली लेकिन एक बाल मन तो कोमल होता है, भोला, निश्छल...इन सब बातों को समझ पाने से कहीं दूर....और परिवार व समाज कितना वीभत्स हो सकता है इसकी कई बार कल्पना करना भी मुश्किल है...ये दुश्वारियाँ मध्यमवर्गीय परिवारों और छोटे शहरों में अधिक हैं...ऐसे बच्चों की परवरिश बहुत ध्यान व समझ से करने की पूरी ज़िम्मेदारी माँ पर ही होगी क्योंकि उसे एक सकारात्मक या सहयोगी वातावरण मिलना फ़िलहाल तो दूर की बात है बल्कि आलोचनाओं और टीका टिप्पणियों का सामना आये दिन  न सिर्फ़ माँ बल्कि बच्चे को भी करना होगा...क्या हम एकल पिताओं को भी उसी तरह का व्यवहार देते हैं जैसे एकल माँ...पिता के केस में ख़ानदान आगे बढ़ने की बात लेकिन माँ के केस में बोझ...ज़रा सोच कर देखें...और ये भी देखें कि किस तरह पितृसत्ता औरत के दिल, दिमाग़, कपड़े, व्यवहार, सपनों से लेकर योनि तक कहीं उसका नियंत्रण नहीं रहने देती. 
  
ये उलझनें हैं जो कई बार इस समाज की सड़न का अहसास कराने लगती हैं. विवाह के रिश्ते में जबरन बनाए गए शारीरिक संबंधों, औरत की मर्ज़ी पूछे बग़ैर या उसके विरुद्ध जाकर या दबाव बनाकर बच्चों की कतारें लगा देना ग़लत नहीं होता...न परिवार और समाज में बल्कि काफ़ी हद तक क़ानून में भी....उसकी इज़्ज़त एक माँ के तौर पर ही होती है...मां से ऊपर तो इस देश में कुछ भी नहीं, सबसे ज्यादा श्रृद्धा इसी के प्रति, इसके नाम पर बलिदान से लेकर हत्याएं और मार काट हो जाए...तो फिर एक मां के प्रति श्रद्धा सिर्फ़ मां होने के कारण होनी चाहिए न...उसमे शादी शुदा होने या न होने की क्या भूमिका...सारा चरित्र निर्माण क्या सिर्फ़ यौन संबंधों के ही आधार पर होगा? क्या ये उसके चयन, उसकी आज़ादी, उसके निर्णयों को सीमित करने या जबरन कंट्रोल करने की कोशिश नहीं? या ये भी पितृसत्ता के लिए एक डर ही है कि जिस व्यवस्था में अभिभावक के तौर पर हमेशा पिता का नाम रहा हो, वंश उसके नाम से आगे बढ़ा हो अगर ये स्त्री के हिस्से चला गया तो क्या होगा? क्या होगा अगर स्त्री मां बनने के लिए भी ख़ुद अपनी मर्ज़ी से चुनाव करने लगे और विवाह संस्था को ख़ारिज कर आगे बढ़ जाए...प्रेम संबंधों पर कामसूत्र रच देने वाले, राधा कृष्ण के प्रेम को पूजने वाले, सरस्वती को देवी मानने वाले, प्रेम पर बनी फिल्मों को ब्लॉक बस्टर बनाने वाले असल व्यवहार में किस कदर दोगले और खोखले हैं...हमारे पास नफ़रत द्वेष और हिंसा के लिए तो भरपूर जगह है पर प्रेम के लिए नहीं...किसी को अगर ये लगता है कि गोद लेना सरल है तो वे भी ये जान लें कि एकल अभिभावक के लिए गोद लेने से जुड़ी प्रक्रिया व कानून भी आसान नहीं बल्कि खासे मुश्किल हैं  

कब होगा कि हम चयन और सहमति को सही अर्थों में समझेंगे...हम हिंसा पर ख़ामोश होना सिखाते हैं, विवाह के भीतर जबरन बनाए संबंधों को बलात्कार नहीं मानते, एक लड़की का बलात्कार हो जाने पर उसका मुंह ढँकवा देते हैं, ये लडकियां माँ सरस्वती की तरह नहीं पूजी जाती...या इन मां सरस्वती की मां कौन थीं...यहाँ परिवार के लोग खाप बन कर इज़्ज़त के नाम पर हत्याएं करते हैं, घर में ही बलात्कार हो जाते हैं...एक लड़की के पैदा होने से लेकर मरने तक हर क़दम उसके लिए एक नयी मुश्किल खड़ी कर देते हैंऐसे में चुनाव, मर्ज़ी वो भी ऐसी तो बड़ी बात हो गयी न...मैं  ये भी जानना ज़रूर चाहूंगी कि भारत माता विवाहित हैं या एकल अभिभावक हैं...या उनके अलावा भी पूजी जाने वाली तमाम माताओं का वैवाहिक स्टेटस क्या है...क्या सारी सहूलियत काल्पनिक पात्रों के लिए है...असल व्यवस्था में सिवाय बंदिशों के कुछ भी नहीं?   

(शीर्षक के लिए मनोज जी का आभार)

4 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन लेख, मुद्दे से जुड़े हर पहलू पर विचार रखा आपने

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  2. वाह बहुत अच्छा लिखा है। ये बातें हमेशा मेरे दिमाग में चलती रहती है कि ऐसा क्यों है। लड़कियाँ बिना शादी के भी माँ क्यों नही बन सकती है? क्यों उन्हें एक बच्चा पैदा करने के लिए शादी करनी पड़ती है। क्या कभी हमारा समाज बिन ब्याही माँ को स्वीकार करेगा?

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  3. Bahut sateek aur maujoo bhi ! Share karne ke liye shukriya !!

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